Friday, October 31, 2008

प्रीति स्पर्श

एक् नन्ही सी छुअन की नाव खेकर
मै पार जाना चाहता हूँ
आँख देखी दूरियों का भूलना,
पास् की परछाइयों पर झूलना
साँस की भटकन सिहरकर थामना ,
आँख आंखों में सजल शुभकामना
एक दुबली-सी किरण की आहटों पर
धुंध को अकवार लेना चाहता हूँ

बौर माखे पवन की-सी डोलती ,
बड़ी पलकें मौन हो -हो बोलतीं
लालसा उत्ताप के स्वर घोलतीं,
नेह-नलिनी नयन-पंखुडी खोलती

साँझ की धुंधली ललाई छेदकर
चाँदनी मे रंग भरना चाहता हूँ
अतल तल में एक कुहरा जागता,
सजग मिठी आस को पहचानता
अनगिनत सुकुमार सपने पालता,

आँसुऒं के मोल बिकना जानता
द्वार बैठे पहरुओं की टोह लेकर ,
अबूझे सब भेद लेना चाहता हूँ
मै समुंदर पार जाना चाहता हूँ ...........

डॉ. रमेश नारायण
पूर्व यूनिवर्सिटी प्रोफेसर ,पटना (बिहार)

Tuesday, October 14, 2008

आमन्त्रण

साहित्य के सभी रसानुरागियों के लिए............