एक् नन्ही सी छुअन की नाव खेकर
मै पार जाना चाहता हूँ
आँख देखी दूरियों का भूलना,
पास् की परछाइयों पर झूलना
साँस की भटकन सिहरकर थामना ,
आँख आंखों में सजल शुभकामना
एक दुबली-सी किरण की आहटों पर
धुंध को अकवार लेना चाहता हूँ
मै पार जाना चाहता हूँ
आँख देखी दूरियों का भूलना,
पास् की परछाइयों पर झूलना
साँस की भटकन सिहरकर थामना ,
आँख आंखों में सजल शुभकामना
एक दुबली-सी किरण की आहटों पर
धुंध को अकवार लेना चाहता हूँ
बौर माखे पवन की-सी डोलती ,
बड़ी पलकें मौन हो -हो बोलतीं
लालसा उत्ताप के स्वर घोलतीं,बड़ी पलकें मौन हो -हो बोलतीं
नेह-नलिनी नयन-पंखुडी खोलती
साँझ की धुंधली ललाई छेदकर
चाँदनी मे रंग भरना चाहता हूँ अतल तल में एक कुहरा जागता,
सजग मिठी आस को पहचानता
अनगिनत सुकुमार सपने पालता,
आँसुऒं के मोल बिकना जानता
द्वार बैठे पहरुओं की टोह लेकर ,
अबूझे सब भेद लेना चाहता हूँ
मै समुंदर पार जाना चाहता हूँ ...........
डॉ. रमेश नारायण
पूर्व यूनिवर्सिटी प्रोफेसर ,पटना (बिहार)
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