Tuesday, May 26, 2009
Saturday, May 9, 2009
आज हिमालय से गंगा को स्वयं उतरना होगा ...
अनगढ़ उलझे भावों को
शब्दों में ढलना होगा
आज हिमालय से गंगा को
स्वयं उतरना होगा
भाव भरे शब्दों को हिमवत
आज पिघलना होगा
प्रेमपुंज को शीतल धारा
बनकर बहना होगा
आज हिमालय से गंगा को ......
बिगडे भटके पौरुष को
भावों में बधना होगा
चंचल सजग सहज नयनो को
सागर बनना होगा
इस सागर में डूब पुरूष को
पार उतरना होगा
और जगत में प्रेम सुधा फ़िर
निसृत करना होगा
उत्तम सर्जन से जगती को
पावन करना होगा
आज हिमालय से गंगा को ...
भावों की निर्झरनी को
आंखों से झरना होगा
श्रधा और समर्पण से
मानस को भरना होगा
प्रेम तत्व को आज जगत की
तृष्णा हरना होगा
सृजन और संहार बीच कुछ
अद्भुत करना होगा
आज हिमालय से गंगा को
स्वयं उतरना होगा
अनगढ़ उलझे भावों को
शब्दों में ढलना होगा
स्तुति नारायण
शब्दों में ढलना होगा
आज हिमालय से गंगा को
स्वयं उतरना होगा
भाव भरे शब्दों को हिमवत
आज पिघलना होगा
प्रेमपुंज को शीतल धारा
बनकर बहना होगा
आज हिमालय से गंगा को ......
बिगडे भटके पौरुष को
भावों में बधना होगा
चंचल सजग सहज नयनो को
सागर बनना होगा
इस सागर में डूब पुरूष को
पार उतरना होगा
और जगत में प्रेम सुधा फ़िर
निसृत करना होगा
उत्तम सर्जन से जगती को
पावन करना होगा
आज हिमालय से गंगा को ...
भावों की निर्झरनी को
आंखों से झरना होगा
श्रधा और समर्पण से
मानस को भरना होगा
प्रेम तत्व को आज जगत की
तृष्णा हरना होगा
सृजन और संहार बीच कुछ
अद्भुत करना होगा
आज हिमालय से गंगा को
स्वयं उतरना होगा
अनगढ़ उलझे भावों को
शब्दों में ढलना होगा
स्तुति नारायण
Wednesday, May 6, 2009
आसमा पैरों तले आते हैं
ढकना चाहूँ जो सर
तो पैर निकल आते हैं
जिन्दगी के उसूल कुछ ऐसे ही हैं
बनना चाहो जो परिंदा
तो शाख छूट जाती हैं ,
गर तलाश पूरी हो दिल की
जमाने में,
शाखाएँ मुट्ठी में औ
आसमा पैरों तले आते हैं
स्तुति नारायण
तो पैर निकल आते हैं
जिन्दगी के उसूल कुछ ऐसे ही हैं
बनना चाहो जो परिंदा
तो शाख छूट जाती हैं ,
गर तलाश पूरी हो दिल की
जमाने में,
शाखाएँ मुट्ठी में औ
आसमा पैरों तले आते हैं
स्तुति नारायण
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