Wednesday, May 6, 2009

आसमा पैरों तले आते हैं

ढकना चाहूँ जो सर
तो पैर निकल आते हैं
जिन्दगी के उसूल कुछ ऐसे ही हैं
बनना चाहो जो परिंदा
तो शाख छूट जाती हैं ,
गर तलाश पूरी हो दिल की
जमाने में,
शाखाएँ मुट्ठी में औ
आसमा पैरों तले आते हैं

स्तुति नारायण

2 comments:

Vinay said...

कविता के भाव बहुत अच्छे हैं

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चाँद, बादल और शामगुलाबी कोंपलें

शारदा अरोरा said...

थोड़े में बहुत कुछ कह दिया है |