Wednesday, December 31, 2008

तुम्हारी बंद आंखों में

तुम्हारी बंद आंखों में

मेरी तस्वीर लहराए

थिरकता चाँद झीलों में

धवल उजियार फैलाये

सुधा की धार बह जाए

ह्रदय का तार छू जाए

kamldahझील में उजली किरण

श्रृंगार कर जाए


तुम्हारी बंद आंखों में ...

ह्रदय की रागिनी में प्रेम का

सुरताल मिल जाए

निकलकर झील से शुभ्रा

सुरों में सोमरस घोले

तेरी मैं हो चुकी कब से

निठुर अब तू मेरा हो ले

तुम्हारी बंद ......

ह्रदय की उर्मियों पर चांदनी

विस्तार पा जाए

जगत की चेतना में वेदना

निज सार पा जाए

तेरी पलकों के उठते ही

मेरी सूरत नजर आए

तुम्हारी बंद आँखों में

मेरी तस्वीर लहराए


स्तुति नारायण

Wednesday, November 26, 2008

सच्ची कहानी

निराली सी इक बात सच्ची कहानी

कहती थी जो मुझको बचपन में नानी

समझती थी जब मैं उसको कहानी

लेकिन न समझी थी तब उसका मानी

वह सच्ची कहानी नहीं थी कहानी

हमारी तुम्हारी ही थी जिंदगानी

स्तुति नारायण

सब एडिटर (सीनियर इंडिया )

Friday, November 21, 2008

सबेरा

सम्भल जाओ कि सफ़र लम्बा है

एक छोटा पत्थर दे सकता है जख्म गहरा ,

पावों तले आ कर गिरा सकता है तुम्हे मुंह के बल ,

उठकर खडा भर हो जाना काफी नहीं होगा ,

क्योंकि तुम्हे तो अभी जाना है चीरकर कुहासा

वहां तक ,

जहाँ से खींच लानी है वह रौशनी ,

जो दूर कर सके

दीपक तले का अँधेरा ,

तब जा कर होगा तुम्हारा सबेरा

स्तुति रानी

सब एडिटर (सीनियर इंडिया )

Wednesday, November 5, 2008

प्रणय-बंध

प्राची के अरुणाभ क्षितिज से बालारुण का आना ,
स्वर्ण कलश ले उषा सुंदरी
का जग को नहलाना ,
प्रथम रश्मि का नेह नलिन को
हौले से छू जाना ,
प्रणय -बंध में मुक्त किरण का
औचक ही बंध जाना ,
जग के सिरजनहार आदि कवि
का लेखनी उठाना ,
रासेशवर का ब्रज गोपिन संग
ब्रज में रास रचाना,
विरह अग्नि की ज्वाला में
ब्रजवासी को झुलसाना,
ऐसा उसका दृश्य प्रकृति में
अपने को दर्शाना ,
शुष्क तपोवन में अमृत की
धारा बन बह जाना

स्तुति रानी
सब एडिटर , सीनियरइंडिया (मैगजिन)

Friday, October 31, 2008

प्रीति स्पर्श

एक् नन्ही सी छुअन की नाव खेकर
मै पार जाना चाहता हूँ
आँख देखी दूरियों का भूलना,
पास् की परछाइयों पर झूलना
साँस की भटकन सिहरकर थामना ,
आँख आंखों में सजल शुभकामना
एक दुबली-सी किरण की आहटों पर
धुंध को अकवार लेना चाहता हूँ

बौर माखे पवन की-सी डोलती ,
बड़ी पलकें मौन हो -हो बोलतीं
लालसा उत्ताप के स्वर घोलतीं,
नेह-नलिनी नयन-पंखुडी खोलती

साँझ की धुंधली ललाई छेदकर
चाँदनी मे रंग भरना चाहता हूँ
अतल तल में एक कुहरा जागता,
सजग मिठी आस को पहचानता
अनगिनत सुकुमार सपने पालता,

आँसुऒं के मोल बिकना जानता
द्वार बैठे पहरुओं की टोह लेकर ,
अबूझे सब भेद लेना चाहता हूँ
मै समुंदर पार जाना चाहता हूँ ...........

डॉ. रमेश नारायण
पूर्व यूनिवर्सिटी प्रोफेसर ,पटना (बिहार)

Tuesday, October 14, 2008

आमन्त्रण

साहित्य के सभी रसानुरागियों के लिए............