Saturday, January 24, 2009

" कविता मैं स्वांत : सुखाय लिखता हूँ "


डा कुमार विश्वास
---- स्तुति
कविता लिखना कब शुरू किया ? आपकी पहली कविता का विषय क्या था ? किस पत्रिका में छपी ?

कुछ ठीक से याद नही ,१९८४ से लिखना शुरु कर दिया था उस वक्त मुख्यत : देश भक्ति वाली कवितायें लिखी पहली कविता 'दैनिक प्रभात 'में १९९६ में छपी थी इसका शीर्षक था 'तुम '

आप क्यों लिखते हैं ?

कविता मैं स्वांत : सुखाय लिखता हूँ मेरे अपने संतोष के लिए

रचना प्रक्रिया के विषय में बताएं

जब कभी दुनिया की आप-धापी और भीड़ -bhad से ख़ुद को अलग करने का मौका मिलता है तो दिल की बेचैनी अंतर्जगत में आकर लेने लगती है

वस्तु और शिल्प में किसे प्रमुखता देते हैं ?

मैं वस्तु को प्रमुख मानता हूँ

कविता की भाषा कैसी होनी चाहिए ?

कविता की भाषा कविता के kendriy bhaw को spasht और sahaj dhang से sampreshit करने वाली होनी चाहिए

आपको क्या लगता है किन khasiyton की wajah से yuwaon के एक बहुत bare warg द्वारा aapki कविता पसंद की jati है

जिस gramy और kasbai jiwan को जिया है ,मेरा bhawjagat उसी के anurup है यहाँ प्रेम sambndhon me आज भी bhawnayen प्रबल हैं प्रेम को sampreshit करने के tarike भी shahron से अलग है inhi bhawon की सहज सरल abhiwykti को लोगों ने swikar कर लिया ,बस

कहा जा रहा है कि कविता दिन-ब-दिन दुरूह होती जा रही है ,जिससे आम लोग इससे जुर नही पा रहे हैं आपका क्या मानना है

ने 'मुक्त छंद' की बात की ,जो भाव की व्यापक अभिव्यक्ति के लिए था, कहीं से भी कविता के भीतरी लय को बाधित करने के लिए नहीं था लेकिन आगे चलकर इसे ही छंद मुक्त करते हुए बिलकुल गद्यात्मक स्वरूप प्रदान कर दिया गया और लाय्विहिनता की ओर बढती हुई कविता दुरूह होती चली गई
क्या लेखन को आप सामाजिक दायित्व मानते हैं ?

अगर सामाजिक दायित्व या किसी भी तरह की प्रतिबद्धता रचनाकार पर ऊपर से थोपी जाये तो कविता पोस्टर या प्रचार बनकर रह जायेगी स्वत:स्फूर्त अभिव्यक्ति ही 'परिस्थिति चक्र में खो चुके मनुष्य के अन्दर के देवत्व को जगा सकती है

लेखन के कारण क्या आपको व्यक्तिगत जीवन में कभी किसी संघर्ष का सामना करना पड़ा?

(थोडा हस्ते हुए )जिनका कहन अलग होता है ,उन्हें भी रहन दुनिया के हिसाब से ही रखना पड़ता है इसलिए संघर्ष तो होगा ही यही रचनाकार के स्वप्न जगत और यथास्थिति के बीच का संघर्ष है ,जिससे कविता जन्म लेती है

कविता की आलोचना और आलोचकों के बारे में आपकी क्या राय है ?आलोचना srijanaparak न रहने दे कर व्यक्तिपरक बना दिया गया है ,जो मेरे हिसाब से आलोचना विधा के विकास में बाधक है

प्रेम की अवधारणा क्या है ?

आत्मतत्व का विस्तार ही जीवन है, इसलिए प्रेम जीवन का केन्द्रीय भाव है मानवता ,राष्ट्रीयता ,वात्सल्य ,भक्ति अनेक रूपों में यह हमारे जीवन में रहता है और समय तथा परिस्थिति के हिसाब से इसका स्वरूप हमारे ही अन्दर बदलता रहता है
स्तुति नारायण
सब एडिटर ,सीनियर इंडिया

4 comments:

hindi-nikash.blogspot.com said...

आज आपका ब्लॉग देखा बहुत अच्छा लगा. मेरी कामना है की आपके शब्दों को नए रूप, नए अर्थ और व्यापक दृष्टि मिले जिससे वे जन-सरोकारों की सशक्त अभिव्यक्ति का माध्यम बन सकें.....
कभी समय निकाल कर मेरे ब्लॉग पर पधारें.
http://www.hindi-nikash.blogspot.com

सादर-
आनंदकृष्ण, जबलपुर.

Udan Tashtari said...

हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका हार्दिक स्वागत है. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाऐं.

एक निवेदन: कृप्या वर्ड वेरीफिकेशन हटा लें तो टिप्पणी देने में सहूलियत होगी.

bijnior district said...

हिंदी लिखाड़ियों की दुनिया में आपका स्वागत।खूब लिखे । अच्छा लिखे । हजारों शुभकामनांए।

संगीता पुरी said...

बहुत सुंदर...आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है.....आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्‍दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्‍दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्‍त करेंगे .....हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।