Thursday, August 13, 2009

विवादों में हिन्दी अकादमी


विवादों में हिन्दी अकादमी दिल्ली सरकार ने हिंदी अकादमी के उपाध्यक्ष पद के लिए साहित्य के जिस प्रतिनिधि को मनोनीत किया है उसपर आरोप है कि वह मंचीय है, गंभीर नहीं। यही वह विवाद है जिसके कारण हिंदी के साहित्यकार दो खेमे में बंटे नजर आ रहे हैं। उल्लेखनीय है कि विगत दिनों हिंदी अकादमी के उपाध्यक्ष पद पर हास्य-व्यंग्य कवि प्रो. अशोक चक्रधर को नियुक्त करने के पश्चात यह मुद्दा जोर पकड़ता जा रहा है। इस विवाद के कारण निजी तौर पर हुई अपनी हानि से आहत डाॅ. अशोक चक्रधर ने वैसे तो इसपर कुछ भी कहने से इनकार किया, लेकिन साहित्य को मंचीय और गंभीर साहितय के रूप् में दो मांगों में बांटने की बात पर उन्होंने आपत्ति जताई और कहा कि लोक साहित्य और शास्त्रीय साहित्य, दो अलग-अलग साहित्य तो हमेशा लिखे गए किंतु किसी भी साहित्य को इस आधार पर अगंभीर कहना मेरे हिसाब से सही नहीं। जिस तरह लोकसंगीत और शास्त्रीय संगीत दो अलग-अलग अपना महत्व रखने वाली चीजें हैं, उसी तरह लोक साहित्य भी जनसामान्य के लिए सुलभ भाषा में लिखा गया साहित्य है। जिसका अपना अलग महत्व है। साहित्य अगर स्वस्थ है, मानवीयता के प्रति प्रतिबद्ध है। श्रोता, पाठक के विवेक और चेतना का विकास करने वाला है तो भाषा के माध्यम से अधिक-से-अधिक लोकजगत से जुड़ा होने को ही मैं उसकी सार्थकता मानता हूं। हास्य, व्यंग्य और आमफहम भाषा में जीवन मूल्यों की रक्षा करते हुए बड़ी बात कहकर समाज को स्वस्थ विचार और चिंतन प्रदान करना भी आसान नहीं। और इसे में साहित्य की जिम्मेदारी भी मानता हूं।मैंने साहित्य का गहन अध्ययन किया है। गजानन माधव मुक्तिबोध पर लिखी मेरी पुस्तकें आज भी विश्वविद्यालय स्तर पर मानक मानी जाती है। अनुभव प्रक्रिया से विवेकपूर्ण निष्कर्ष तक पहुंचकर उसे क्रियान्वयन की परिणति तक ले जाना ही मुक्तिबोध की सीख थी। मेरा भाषा एवं साहित्य के विकास व विस्तार के लिए लोकसाहित्य से जुड़ना भी इसी सीख से प्रभावित था। मेरा मानना है कि विवदों के बजाए विमर्श होना चाहिए कि साहित्य क्या है? कविता क्या है? उसकी कितनी धाराएं हैं? हर धारा में विद्यमान गंभीर और अगंभीर तत्व की पहचान किन आधारों पर हो? सभी पक्षों को जाने बिना निर्णायक बनना उचित नहीं। हास्य और व्यंग्य को दोयम दर्जे का साहित्य मानने वाले कुछ लोग हास्य कवि कहकर मेरी एकांगी छवि बनाना चाहते हैं। हास्य कवि कहते हुए उनके मन में कोई सम्मान नहीं होर्ताहिंदी अकादमी के उपाध्यक्ष का पद मानद है, इसके लिए कोई वेतन नहीं होता। क्रियान्वयन की जिम्मेदारी का पद भी सचिव का है। उपाध्यक्ष का काम दिशा-निर्देश और परामर्श देना है। हिंदी अकादमी का कार्य साहित्य का पोषण तथा हिंदी भाषा का प्रचार-प्रसार है। इन दिनों आगामी कार्यक्रमों की रूप रेखा बन रही है। हिंदी अकादमी के उपाध्यक्ष के तौर पर मैं सभी हिंदी सेवियों को साथ लेकर चलना चाहता हूं। अनुकूल माहौल में उचित दिशा में कार्य हो यही हिंदी के भविष्य के लिए अच्छा रहेगा।इस मुद्दे पर अन्य साहित्यकारों की टिप्पणियां कुछ इस प्रकार थीं- प्रसिद्ध कवि और समीक्षक डाॅ. बलदेव वंशी कहते हैं कि हिंदी अकादमी के उपाध्यक्ष पद के लिए चुने जाने का विरोध होना अशोक चक्रधर पर गैर जिम्मेदाराना अटैक है। भ्रष्ट या अयोग्य व्यक्ति हो सकता है, विधा भ्रष्ट नहीं होती। हास्य, व्यंग्य की रचना करने और मंच से जुड़े होने के आधार पर उन्हें अयोग्य बताकर उनके लिए निम्न शब्दों का प्रयोग करना अनुचित है। साहित्य का लोकोन्मुखी होना ही भारतीय सोच है, व्यक्तिवादी सोच तो पश्चिम से प्रेरित है। निराला, अज्ञेय, पंत, महादेवी नागार्जुन सभी मंच से जुड़े थे, क्या ये भ्रष्ट थे? अशोक चक्रधर लोकोन्मुखी कवि है, उन्होंने मुक्तिबोध पर भी काम किया है, जो बहुत ही गंभीर और कठिन था। वे प्रोफेसर रह चुके हैं, उन्होंने हिंदी के लिए बहुत काम किया है। और उनकी गंभीरता और विद्वत्ता पर सवाल नहीं उठना चाहिए उन्हें काम करने देना चाहिए।इस बारे में जानी मानी साहित्यकार सुनीता जैन कहती हैं कि अशोक चक्रधर का विरोध कर रहे लोगों से मेरा सैद्धांतिक स्तर पर विरोध है। अशोक जी को जिस पद के लिए चुना गया है वह प्रबंधन के लिए है, इसलिए नहीं कि वे कितने बड़े साहित्यकार हैं। ऐसे में इन आधारों पर उनके लिए खराब शब्दों का प्रयोग करना उन्हें विदूषक आदि बोलना बिल्कुल गलत है। विरोध या समर्थन का आधार यहां यह होना चाहिए कि व्यक्ति एकेडमी को सूचारू रूप से चलाने की योग्यता रखता है या नहीं। यू पी का संस्थान तो इससे भी बहुत बड़ा है और सोम ठाकुर भी मंचीय कवि हैं, लेकिन उनके नाम पर तो इन लोगों ने कोई विवाद नहीं मचाया था, फिर अब क्यों ?प्रसिद्ध साहित्यकार महीप सिंह ने कहा कि जिस व्यक्ति ने हिंदी की इतनी सेवा की है, पढ़ाते हुए जिसे वर्षों गुजर गए हैं उसके बारे में निम्न शब्दों का प्रयोग करना और इस पद के लिए अयोग्य बताना उचित नहीं है। अगर वह मंच से जुड़ा है और हास्य लिखता है सिर्फ इसलिए गंभीर साहित्यकार नही ंतो फिर दिनकर, निराला सबने मंच पर कविताएं पढ़ी, हरिशंकर परसाई ने अपने व्यंग्य के माध्यम से जो गंभीर संदेश दिए वे सभी जानते हैं। अशोक चक्रधर योग्य हैं, कुशल हैं, विवाद को शांत होना चाहिए। सफल कवि तथा आलोचक रामदरस मिश्र कहते हैं अशोक चक्रधर के पांडित्य पर हमें विश्वास है और काम के पश्चात ही कुछ कहा जा सकता है। उनकी विशेषता यह है कि वे जि समंच पर होते हैं उसके अनुकूल बोलते हैं। हास्य व्यंग्य के बीच वैसा ही बोलते हैं और गंभीर गोष्ठी में गंभीर वक्तव्य देते हैं। उन्होंने हिंदी को विश्व स्तर पर प्रचारित किया है। इसलिए पूर्वकल्पना के आधार पर विरोध करना ठीक नहीं है। काम देखने के बाद ही कुछ कहा जा सकता है। उनकी क्षमता से हम आश्वस्त हैं।युवा कवि डाॅ. कुमार विश्वास ने कहा कि निराला ने जो कविता भावना के नियमन के लिए मुक्त छंद की बात की उसे कुछ लोगों ने छंद मुक्त करते हुए भावनाओं की जटिल और दुरूह अभिव्यक्ति का माध्यम बना लिया और इनकी रचनाएं जनता से स्वीकृति नहीं पा सकीं वे लोक के बीच नहीं रह पाए, लोकप्रिय नहीं हो पाए। तो मेरा मानना यह है कि अशोक चक्रधर विवाद के माध्यम से उनकी ही कुंठा बाहर आ रही है। जहां तक अशोक जी की बात है तो वे हिंदी को विश्व स्तर पर प्रचारित करने वाले और वर्षों प्रोफेसर रह चुके हैं। माइक्रोसाॅफ्ट को हिंदी में कनवर्ट करने वाले वहीं हैं। ऐसे व्यक्ति के लिए विवाद मचाना अपने अंदर का दुराग्रह है। इस लिए पहले काम करने देना चाहिए पहले ही यह कहना कि वे अयोग्य हैं, पूर्वाग्रह है।

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